भाग 1
04 मार्च 2012
मैं – सर, छुट्टी चाहिए।
बॉस – कितने दिन की?
मैं – 15 दिन की। जुलाई में।
बॉस – 15 दिन !!! ऐसा क्या काम है ?
मैं – सर घूमने जाना है, बहुत समय से नहीं गया हूँ और पिछले 6 महीने से छुट्टी भी नहीं ली है।
बॉस – देखो, मैं 15 दिन की छुट्टी तो नहीं दे सकता चाहे जो हो जाये।
मैं – ठीक है सर, आज शाम तक रिजाइन भेज दूंगा।
बॉस – हैं !!!
शाम को रिजाइन डाल दिया, बहुत कोशिश की बॉस ने की मैं रिजाइन वापिस ले लूं मगर अब धुन सवार थी, कि घूमने तो जाना है।
नौकरी और मिल जाएंगी, मगर ऐसा मौका हर बार नहीं मिलेगा।
04 मई 2012 – आफिस में आखिरी दिन भी खत्म हो गया, और मैं अब आज़ाद पंछी था।
ये थी शुरुआत मेरे लेह के सफर की जो मैंने 2012 में किया था।
2011 से ही अखबारों और टीवी पर कयास आने लगे थे कि 2012 के आखिर में दुनिया खत्म हो जाएगी। सोचा जब दुनिया खत्म ही होनी है तो अपनी सबसे बड़ी इच्छा पूरी कर लूं।
घुमक्कड़ी के मामले में में जिस इंसान से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ वो थे योगेश सरकार।
योगेश सरकार के ट्रेवल फोरम – BCMT.com से मैं 2008 से जुड़ा हुआ था और लगभग हर ट्रेवल ब्लॉग पढ़ चुका था।
एक दिन BCMT पर एक पोस्ट आयी। लिखा था कि वो दो लोग Wagon-R से लेह जाने का प्लान कर रहे हैं और उन्हें और साथी चाहिए।
मैंने उस पोस्ट पर रिप्लाई कर दिया और जानकारी मांगी। जब कमैंट्स के माध्यम से थोड़ी बातचीत हुई तो पता चला कि वो दोनों भी दिल्ली के रहने वाले ही हैं और पूसा इंस्टिट्यूट में वैज्ञानिक हैं।
थोडे दिन बाद फ़ोन पर बात हुई और मिल भी लिए, मैंने जुलाई में जाने के लिए हामी भर दी।
ऐसा पहली बार हो रहा था कि जिन्हें मैं कभी जानता भी नहीं था, उनके साथ 15 दिन घूमने जा रहा था। जिसने भी सुना, मुझे पागल ही करार दिया। सहकर्मी पूरी बात सुनने के बाद ऐसे घूर कर देखते थे कि मानो उन्होंने कोई दूसरे ग्रह का प्राणी देख लिया हो।
अब अगली पोस्ट में तैयारी और पहले दिन का विवरण थोड़े विस्तार से दूंगा।
क्रमशः ….