अगस्त 2016, चान्शल पास की यात्रा के ठीक 1 साल बाद, घूमने का कीड़ा फिर बहुत जोरों से कुलबुला रहा था। यूँ तो बीच में भी कुछ बाइक राइड हो चुकी थीं, पर न जाने क्यों अगस्त आते आते मन फिर बेचैन हो जाता है शहर की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी से बच निकलने के लिए, कुछ पल सुकून से हिमालय कि गोद में बिताने कि लिए. खैर,ये तो हर साल का किस्सा है। हमारी अधिकतर लम्बी राइड्स अगस्त-सितम्बर या फिर अप्रैल-मई में ही होती हैं क्योकि इन दो महीनो में मौसम एकदम परफेक्ट होता है और भीड़ कम।
मुनस्यारी जाने का आईडिया डॉक्टर साहब का था। हमारे चंशल राइड के साथी,जग्गी जी, अभी जुलाई में अकेले मुनस्यारी हो के आये थे और उनकी फोटोज देख देख के हमे बुखार हो रहा था। फिर क्या था, प्लान बनाया और फेसबुक पर इवेंट डाला ताकि कुछ और लोग जुड़ जाएँ। फेसबुक इवेंट पर अच्छा रेस्पोंस आया था तो हमें लगा कि 10-12 लोग तो हो ही जायेंगे-जितने ज्यादा लोग,उतनी ज्यादा मस्ती। फेसबुक पर और फ़ोन पर बहुत लोगों ने हामी भरी थी साथ चलने की मगर राइड का दिन आते आते हम ३ लोग ही रह गए थे बाकी सभी की ‘ना’ आ गयी थी। खैर,राइड तो करनी ही थी,चाहे 2लोग ही जाते. इस राइड पर जाने वाले ३ लोग थे :
1. विकास भदौरिया(मैं)
2. डॉ मनीष कंसल
3. रणदीप अवस्थी
25 सितम्बर 2016 – रात 12 बजे गज़ियाबाद से निकलने का प्लान था, सभी ने डासना टोल पर मिलना था। इस बार विक्रम की पीठ को आराम देते हुए बेताल, यानी कि मै, नदारद था क्योकि बेताल के पास नयी बाइक आ गयी थी ! यामाहा R-15 V2. रात 11 बजे हम तीनों डासना टोल पर मिले और निकल पड़े मुरादाबाद की तरफ
डासना टोल पर, निकलने की तैयारी में
गजरौला पर ढाबे में चाय ब्रेक
मुरादाबाद से पहले एक कट पड़ता है जो आपको बाज़पुर – टांडा होते हुए कालाढूंगी के रास्ते नैनीताल और भीमताल ले जाता है। उस कट पर मुड कर हमने बाइक रोकी और चाय पीते हुए थोडा आराम किया। गलती से मैंने अपनी बाइक की लाइट ऑन छोड़ दी। बस, फिर क्या था,चाय पी के बड़ी शान से बाइक पर बैठे, सेल्फ मारा, बाइक स्टार्ट ही नहीं हुई, सेल्फ मारने पर कोई आवाज़ भी नहीं। अब दिमाग कि बत्ती गुल हो गयी. रात के 3 बजे, बाइक ने चलने से मना कर दिया, रास्ता भी ऐसा कि दूर दूर तक उस चाय वाले के सिवा कोई नहीं दिख रहा था। R-15 स्पोर्ट्स बाइक है और इसमें किक भी नहीं है. ऐसे में सेल्फ खराब हो जाना मतलब सत्यानाश …
थोड़ी देर कोशिश करने के बाद डॉक्टर साहब और रणदीप ने धक्का मार के बाइक स्टार्ट करवाई। सबक मिल गया कि बाइक खड़ी करते ही ऑफ कर के चाबी निकाल लो नहीं तो बैटरी ख़तम हो जाएगी और फिर स्टार्ट नहीं होनी बाइक। इस से बढ़िया तो मेरी पुरानी डिस्कवर ही थी, मान-मनौव्वल से न चले तो 4 लात खा कर तो चल ही पड़ती थी। इस नयी रानी के तो मिज़ाज ही अलग थे।
सुबह हुई और हम अभी तक कालाढूंगी ही पहुच पाए थे. कारण थी मुरादाबाद से कालाढूंगी तक बहुत ही खराब सड़क. 3-3 फुट गहरे गड्ढे थे सड़क में, हम चाह के भी 20-3० की स्पीड से ऊपर नहीं चला पा रहे थे बाइक. कालाढूंगी पहुँच कर बढ़िया सड़क मिली तो दौड़ा दी बाइक. रास्ते में 10 मिनट का ब्रेक लिया गया. रुकते ही मैंने उतर कर अपनी रामप्यारी को दंडवत प्रणाम करते हुए उस से बस ये ही प्रार्थना की कि अब रस्ते में कहीं भी नखरे ना दिखाना वरना पहाडो में तुझे घसीटने में मेरा दलिद्दर हो जायेगा.
रामप्यारी की मान मनव्वल
सुबह 8 बजे तक हम भीमताल पहुँच गए, यहाँ डॉ साहब के एक सीनियर डॉ दीपक सीपाल सरकारी अस्पताल में ही कार्यरत हैं. निकलने से पहले डॉ साहब ने उन्हें फ़ोन कर के अपने आने कि सूचना दे दी थी और पूरा प्लान बता दिया था अतः हमारे भीमताल पहुचने पर हमारे नाश्ते और आराम करने का इंतज़ाम भीमताल के KMVN Tourist rest house में था. भीमताल का TRH बहुत ही अच्छी लोकेशन पर है जहाँ से भीमताल का नज़ारा बहुत सुन्दर दिखता है.
नहा-धो कर नाश्ता करने के बाद हम फिर अपना सामान बाँधने लगे क्योकि आज की मजिल थी कौसानी. सामान बांधते हुए मैंने देखा कि एक महिला गेस्ट हाउस के गेट पर खड़ी हुई बड़े ही कौतूहल से मुझे देख रही हैं. नज़र मिली तो मैंने दूर से ही अभिवादन किया जिसके जवाब में वो मुस्कुराते हुए मेरी मोटरसाइकिल के पास आ गयीं. बातों बातों में पता चला कि वो TRH के मेनेजर, शर्मा जी की वाइफ हैं और अपने बेटी-दामाद के साथ भीमताल आई हैं उनको और उनके बच्चों को भीमताल दिखाने.
जैसे ही मौका मिला, उन्होंने पूछ ही लिया “बेटा , आप लोगों को क्या बाइक पर घूमने के लिए कंपनी पैसे देती है? … सुनकर मेरी हंसी छूट गयी… ये सवाल अलग अलग लोगों से मैं कई बार सुन चूका हूँ और हर बार एक ही जवाब देता हूँ कि शौक है बस घूमने का वो ही पूरा करने के लिए घूमते हैं, पैसे मिलने लग जायें घूमने के तो घरवाले भी नहीं ढूंढ पायेंगे कि मैं कहाँ हूँ … बस ये ही जवाब उन्हें दिया तो वो मुझे ऐसे देखने लगीं जैसे में कोई पागल हूँ.
तब तक सामान बाँध कर हम सब रेडी थे. डॉ. दीपक से विदाई ली और चल पड़े कौसानी कि ओर, जो आज का हमारा ठिकाना था रात बिताने का. दीपक जी ने पहले ही KMVN कौसानी में फ़ोन करवा दिया था और हमारे आने कि खबर दे दी थी ताकि हमें होटल ढूँढने में समय बर्बाद न करना पड़े. मगर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था.
अब कौसानी पहुच के क्या हुआ – ये अगले भाग में .. क्रमशः …
यात्रा की योजना बनाते समय जरूर दर्जनों इकट्ठे जाते हैं और आखिरी दिन तो सब गायब हो जाते है।
पता नहीं कहां गायब हो गए खैर यह तो होता रहता है रामप्यारी के सामने नतमस्तक होने वाला फोटो जबरदस्त शानदार
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धन्यवाद सर जी, आपकी ये आदत बहुत अच्छी लगती है कि आप हर पोस्ट पर कमेंट करते हो।
इस से और अगर लिखते रहने की प्रेरणा मिलती रहती है।
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बढ़िया.. Waiting for next part
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विकाश जी बाईक यात्रा मुझे बहुत आकर्षित करती है। पढना अच्छा लगता है, आपकी शुरूआत अच्छी रही बस बाईक की लाईट को छोडकर। आगे की पोस्ट का इंतजार रहेगा।
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Mushkil we hi sahi par page open ho gaya. Bahut sunder. Agle list part2 me intajar main
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मुंसियारी के मलंग आज भीमताल पहुचे है…रामप्यारी को नतमस्तक आपके फोटो को देखकर हँसी छूट गयी…मजा आएगा मुंसियारी घूमने में…
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बहुत ही शानदार लिखा है भाई, आगे के वर्णन का इंतजार रहेगा
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It was interesting to read your travel experience to Bhimtal, Kausani and Munsiyari.
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Thank you for encouragement Dhruvi.
I stopped writing travelogues because of work pressure but now I have started writing again.
Posted part 3 and aiming to complete Munsyari travelogue in this week.
There are many more to come 😊😊
Keep connected.
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