सुबह जल्दी निकलने का प्लान आज धरा का धरा रह गया। रात को देर से सोने की वजह से कोई भी जल्दी नही उठ पाया था। तैयार होते होते 9 बज गए।
होटल में नाश्ता करने का किसी का मूड नहीं था, सो हम सबने तय किया कि शाम को वापिस चकराता आते समय जो आर्मी कैंटीन देखी थी, वहीं नाश्ता किया जाए।
आर्मी कैंटीन का नाश्ता वाक़ई में बहुत बढ़िया था और पैसे भी सही थे। नाश्ता हुआ, और दीपक सर की आवाज़ आयी ‘Guys..!! Rolling in 5 minutes.’ ये लाइन हमें पूरी ट्रिप पर कई बार सुननी है।
दीपक जी के कहते ही सब रेडी हो गये। उन्होंने हम सब को चलने का इशारा किया और बोले कि वो और जग्गी जी पीछे आएंगे। फिर क्या था, सब चल पड़े।
ग्रुप में चलने की सबसे अहम बात होती है कि सबसे आगे वाला ये ध्यान रखे कि सबसे पीछे वाला उसके mirror में दिखाई दे रहा है या नहीं। हमसे ये ही गलती हो गयी। हम सब आगे निकल गए और दीपक जी पीछे रह गए।
करीब 15 कि मी जाने के बाद हम रुके और देखा कि न तो जग्गी जी हैं और न ही दीपक जी का कोई अता पता है। सो सभी लोग रुक के उनके आने का इंतज़ार करने लग गए। आधा घंटा हो जाने पर भी जब वो नही आये तो हमे चिंता होने लगी। फोन लगाया पर कोई जवाब नही मिला। 10 मिनट और इंतज़ार करने के बाद जग्गी जी आये तो हमने पूछा कि दीपक जी कहा हैं? उन्होंने कहा कि उन्हें नही पता वो तो अकेले ही आ रहे हैं।
ये सुन कर हमारे पसीने छूट गए। अगर दीपक जी इतनी देर में भी नहीं आये हैं तो कहाँ रह गए, फ़ोन भी नही उठा रहे थे। मन मे तरह तरह के बुरे खयाल आने लगे। जब रहा नही गया तो प्रवीण अपनी बाइक ले के उन्हें ढूंढने निकला।
आधा घंटा और गुज़रने के बाद देखा कि प्रवीण और दीपक जी आ रहे है। जब उनसे पूछा तो पता चला कि वो गलती से टाइगर फॉल जाने वाली सड़क पर निकल लिये थे। काफी दूर जाने पर पता चला कि गलत रास्ते पर आ गए है। ख़ैर, गलती से सबक लिया और सभी साथ साथ चल पड़े।
मैं डॉ साहब की बाइक पर पीछे बैठे बैठे थक गया था और घुमावदार पहाड़ी सड़कें देख के मेरा भी मन कर रहा था बाइक चलाने का, सो रोहित की पल्सर अब मैं चला रहा था। धीरे धीरे बाइक चलाने में जो मज़ा आ रहा था वो में बता नही सकता। तभी मज़ा मेरे लिए सज़ा बन गया….
हम त्यूनी पहुचने वाले थे. मैं 30 या 40 की स्पीड से जा रहा था और मेरे आगे एक महिंद्रा पिकअप चल रही थी। थोड़ा सा ध्यान भटका और महिंद्रा वाले ने मोड़ पर करने के बाद अचानक गाड़ी रोक दी। मैं अभी मोड़ पर ही था और बाइक थोड़ी झुकी हुई थी।
जैसे ही ब्रेक लगाए, मोड़ पर और झुकी होने की वजह से बाइक स्लिप हो गयी। मेरा सिर सड़क किनारे पड़े पत्थर से जा टकराया और में थोड़ा दूर तक बाइक के साथ घिसटता चला गया।
वैसे मैं हमेशा knee guard और elbow guard पहन कर ही बाइक चलता हूं। पर विनाश काले विपरीत बुद्धि.. न सिर्फ मैंने अपने elbow guard उतार दिए थे, बल्कि जैकेट भी गर्मी लगने की वजह से उतार दी थी और हाफ टीशर्ट में था। उस गलती की पूरी सज़ा मुझे मिली। दायें हाथ की कोहनी से कलाई तक पूरा हाथ छिल गया था और मेरे कंधे में भी थोड़ी गुम चोट आई थी। सभी ने मिल कर मुझे संभाला और बैठा कर अच्छे से घाव को धोया और दवाई लगाई। थोड़ी देर रुकने के बाद हम चल पड़े मगर अब मैं वापिस बेताल बन चुका था।
हाटकोटी पहुच के हमने एक मेडिकल स्टोर से पट्टी ली और मेरी डेंटिंग पेंटिंग की गई, वहीं आस पास किसी होटल में हमने दोपहर का खाना खाया और चल पड़े अब रोहड़ू की ओर।
हाटकोटी से रोहड़ू वैसे तो ज़्यादा दूर नही है, मगर सड़क इतनी खराब थी कि एक एक मिनट भारी पड़ रहा था। उस समय सड़क चौड़ी हो रही थी और उसकी वजह से पूरे रास्ते मे धूल ही धूल थी। ऊपर से न के बराबर सड़क और गड्ढे । मेरी कमर अब कुछ कुछ कहने लगी थी और चोट में भी लगातार दर्द हो रहा था।
रोहड़ू किसी तरह हम शाम को 5 बजे पहुँचे और सबसे पहले पेट्रोल पंप पर पहुचे क्योकि गाड़ियों में पेट्रोल लगभग खत्म होने को था।
पेट्रोल पंप पर बातों बातों में पता चला कि चांशल पास रोहड़ू से 70 कि मी दूर है और रास्ता भी खराब है। पेट्रोल पंप वाले ने ही बताया कि करीब 35 कि मी आगे जा कर चिरगाँव पड़ेगा जहाँ से चांशल 35 कि मी रह जाता है। और वह रात को रुकने के लिए भी जगह मिल जाएगी। हमने भी सोचा कि अभी उजाला है ही, और 35 कि मी तय करने में ज़्यादा से ज़्यादा डेढ़ घंटे का समय लगेगा। सभी चल पड़े अब चिरगाँव की तरफ।
चिरगाँव पहुँचते पहुंचते अंधेरा घिरने लगा था। वहां पूछने पर पता चला कि पास के गांव में किसी देवता का मेला लगा होने के कारण कोई होटल खाली नही है। दूर दूर से लोग आए हुए है मेला देखने और सभी होटल फुल हैं।
अब बड़ी मुसीबत में पड़ गए थे। वापस रोहड़ू जाने का समय नही था क्योंकि आते समय बहुत खराब रास्ता मिला था और रात में उस रास्ते को पार करना खुद ही अनहोनी को दावत देना था। बहुत ढूंढने पर एक होटल मिला भी मगर वो कमरे इतने गंदे थे कि वहां रुकने का सवाल ही पैदा नही होता था।
आज तो बेटा रात सड़क किनारे किसी दुकान के चबूतरे पर ही गुज़ारनी पड़ेगी।… हम यही सोच कर अपना सामान बाइक से उतारने लगे थे कि एक लड़का आ के बताता है कि चिरगाँव से 5 कि मी आगे चडग़ांव है। वहां वो हमारे रहने की व्यवस्था करवा देगा। अंधे को क्या चाहिए.. एक होटल..।। हमने उसे एक बाइक पर बिठाया और निकल पड़े चडग़ांव की ओर।
चडग़ांव पहुँच कर उस लड़के ने एक दुकान के सामने गाड़ी रुकवाई और बोला यही है वो जगह। हम असमंजस में पड़ गए क्योकि वह तो सेब का गोदाम था और ट्रक में सेब की पेटियां लादी जा रही थीं। चलो… सड़क पर सोने से अच्छा है सेब की पेटियों पर ही सो लेंगे। कम से कम सर पर छत तो होगी।
वो लड़का उस जगह के मालिक को बुला कर लाया तब हमें पता चला कि गोदाम के ऊपर पहली मंजिल पर 3 कमरे थे और वो एक तरह से छोटा सा होटल ही था। अभी नया ही बना था शायद क्योंकि हर चीज़ नई थी कमरे में। हमने रेट सुना तो बिना मोल भाव करे चुपचाप कमरे ले लिए। 500 रुपये का एक कमरा मिला।
नीचे ही बगल में ढाबा था तो खाने की चिंता नही थी। सर्दी बहुत हो रही थी, इसलिए बूढ़े साधु को फिर याद किया गया। अब जब टेंशन खत्म तो महफ़िल जमी। देर रात तक बातें हुईं, खाना खाया गया और सब थकान के मारे सो गए।
मुझे दर्द कर मारे नींद नही आ रही थी और पूरे दिन की थकान से ऐसी हालात हो गयी थी कि बैठा भी नही जा रहा था. .।। अजीब हालात हो गयी थी मेरी। खैर, किसी तरह सोया ये सोच के कि आज नही सोया तो कल क्या हाल होगा मेरा।
आज का किस्सा यहीं तक, बाकी अगले भाग में… जब हमारा सामना होगा चांशल से… चोट लगने की वजह से आज कुछ ज़्यादा फ़ोटो नहीं खींच पाए थे। इसलिए एक ही फ़ोटो डाल रहा हूँ।
चलो भाई कम से कम लापरवाही के कारण बेताल तो बने और उस बेताल बनने का लाभ यह होगा आगे हमेशा के लिए सबक मिला होगा श।
चलो अब चलते हैं अगले लेख पर
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